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बन्द घर।

सभी कुछ अकाल मेँ और अपूर्णता मेँ ही समाप्त हो गया है। बाल्यावस्था में सात समुद्र पार होकर, मृत्यु को भी नाँध कर, जहाँ कहानी की यथार्थ समाप्ति है वहाँ स्नेहमय और मधुर स्वर में मैँ सुनता था―

आमार कथाटि फुरोलो,
नटे गाछटि मुड़ोलो।

(अर्थात् मेरी कहानी समाप्त हुई और नट का वृक्ष शाखा- पत्र आदि से रहित हुआ। )

इस समय बाल्यावस्था नहीं है। इस समय बीच ही में कहानी के रुक जाने से ये कठोर शब्द सुन पड़ते हैं―

आमार कथाटि फुरोलो ना,
नटे गाछटि मुड़ोलो ना॥
केनारे नटे मुड़ोलि ने केन,
तोर गोरुते―

(अर्थात्, मेरी कहानी समाप्त नहीं हुई, नट का वृक्ष नहीं मुड़ गया। क्यों रे नट! तू मुड़ा क्यों नहीं, अच्छा तुझे बैल―)

जाने भी दो इन बातों को, इस निरीह प्राणी का नाम न लेना हो अच्छा है; न-जाने कौन उसे अपने लिए समझ ले।


बन्द घर

बड़ी भारी बस्ती में केवल एक घर बन्द है। उसके ताले में मोर्चा लग गया है। बहुत ढूँढ़ने पर भी उसकी चाभी का पता नहीं