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विदेशी विद्वान्

पोप से की। इस पोप ने भी जब देखा कि प्रायः देश का देश ही गैलीलियो का विरोधी है तब उसने उसे फिर रोम में बुलाया। इस समय गैलीलियो ७० वर्ष का बुड्ढा हो गया था। पोप ने पहली बार का जैसा अभियोग फिर उस पर चलाया। कई महीने गैलीलियो रोम में रहा और उसे वहाँ बहुत कष्ट मिला। अन्त में, अत्यन्त दुःखित होकर, और वचने का कोई दूसरा उपाय न देखकर, न्यायाधीश की आज्ञा के अनुसार, उसने अपने मुख से इस प्रकार कहा―“यह झूठ है कि पृथ्वी चलती है। मुझसे अपराध हुआ जो मैंने वैसा कहा। मैं क्षमा माँँगता हूँ। आज से जो आप कहेगे उसी पर मैं विश्वास करूँगा। यदि फिर मुझसे ऐसी भूल हो तो आप जो दण्ड चाहे मुझे दें। मैं उसे चुपचाप सहन करूँगा।” विवश होकर यह सब कह चुकने पर गैलीलियो को इतना क्रोध आया और मन ही मन वह इतना जल भुन गया कि पृथ्वी को लात से मारकर उसने धीरे से कहा―“यह अब भी चल रही है।”

कुछ दिनों में गैलीलियो अन्धा हो गया और ७८ वर्ष की अवस्था में, १६४२ ईसवी की ८ वीं जनवरी को, वह पर- लोक-वासी हुआ। गैलीलियो, अपने समय में, महाविद्वान् और महाज्योतिषी हो गया। उसकी बुद्धि बड़ी तीव्र थी। यदि गैलीलियो न उत्पन्न होता और दूरवीन बनाकर ग्रहों का सच्चा-सच्चा ज्ञान न प्राप्त करता तो ज्योतिप-विद्या आज इस दशा को कभी न पहुँचती।