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पृष्ठ:विदेशी विद्वान.djvu/१२३

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बुकर टी० वाशिंगटन


साय, मितव्यय और सुव्यवस्था के विषय में प्रेम उत्पन्न हो जाय; उनकी बुद्धि, नीति और धर्म मे सुधार हो जाय; और जब वे पाठशाला से निकले तब अपने देश में स्वतन्त्र रीति से उद्यम करके सुख-प्राप्ति कर सके तथा उत्तम नागरिक (Citizen) बन सके। इन तत्त्वो के अनुसार शिक्षा देने के लिए वाशिंगटन के पास एक भी साधन की अनुकूलता न थी। ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा तक उनके पास न था। इतने में उन्हे मालूम हुआ कि टस्केजी गाँव के पास एक खेत बिकाऊ है। इस पर हैम्पटन के कोषाध्यक्ष से ७५० रुपया क़र्ज़ लेकर उन्होंने वह ज़मीन मोल ले ली। उस खेत मे दो-तीन झोप- ड़ियाँ थीं। उन्हों मे वे अपने विद्यार्थियों को पढ़ाने लगे। पहले पहल विद्यार्थी किसी प्रकार का शारीरिक काम न करना चाहते थे; परन्तु जब उन लोगों ने अपने हितचिन्तक शिक्षक, मिस्टर वाशिंगटन, को हाथ मे कुदाली-फावड़ा लेकर काम करते देखा तब वे भी बड़े उत्साह से काम करने लगे।

धन की आवश्यकता

जमीन मोल लेने के बाद इमारत बनाने के लिए धन की आवश्यकता हुई। धन के बिना कोई भी उपयोगी काम नहीं हो सकता। तब कुमारी डेविडसन (टस्केजी पाठशाला की एक अध्यापिका ) और मिस्टर वाशिंगटन ने गॉव-गॉव भ्रमण करके द्रव्य इकट्ठा किया। यद्यपि इस काम में वाशिंगटन को अनेक निद्रा-रहित रात्रियाँ व्यतीत करनी पड़ी, तथापि अन्त में