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विदेशी विद्वान्

क्यों न हो―अत्यन्त क्षुद्र ही क्यों न हो―यदि यह औरों से अधिक उपयोगी, सुखदायक और कल्याणकारक होगा तो वर्ण या जाति की परवा न करते हुए, “गुणाः पूजास्थानं” इस सनातन नियम के अनुसार, सब लोग उसका उचित आदर अवश्य ही करने लगेंगे। कार्य का आदर करने में―सद्गुणो का सत्कार करने सें―कार्यकर्ता का सम्मान करना ही पड़ता है। अमेरिका-निवासियों ने बुकर टी० वाशिंगटन जैसे सद्गुणी और परोपकारी कार्यकर्ता का उचित आदर करने मे कोई बात उठा नहीं रक्खी। हारवर्ड-विश्व-विद्यालय ने आपको “मास्टर आफ़ आर्ट् स” की सम्मानसूचक पदवी दी है। अटलंटा की राष्ट्रीय प्रदर्शिनी खोलने के समय, उस प्रान्त के गवर्नर साहब ने वाशिंगटन को आरम्भिक वक्तृता करने का बहुमान दिया है। अमेरिका के प्रेसिडेंट (राजा) ने टस्केजी- संस्था में पधारकर नीग्रो जाति के अगुआ वाशिगटन का गौरव करते समय यह कहा कि “यह संस्था अनुकरणीय है। इसकी कीर्ति वहीं नहीं, किन्तु विदेशों में भी बढ़ रही है। इस संस्था के विषय मे कुछ कहते समय मिस्टर वाशिंगटन के उद्योग, साहस, प्रयत्न और बुद्धि-सामर्थ्य के सम्बन्ध में कुछ कहे बिना रहा नहीं जाता। आप उत्तम अध्यापक हैं, उत्तम वक्ता हैं और सच्चे परोपकारी पुरुष हैं। इन्हीं सद्गुणों के कारण हम लोग आपका सम्मान करते हैं।”