पृष्ठ:विदेशी विद्वान.djvu/१६

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२―हर्बर्ट स्पेन्सर

यह संसार प्रकृति और पुरुष का लीला-स्थल है। बिना इन दोनों का संयोग हुए संसार क्या कुछ भी नहीं बन सकता। संसार में दृष्टादृष्ट जो कुछ है प्रकृति का खेल है; पर उस खेल का दिखानेवाला पुरुष है। प्रकृति का दूसरा नाम पदार्थ है और पुरुष का दूसरा नाम शक्ति। जितने पदार्थ हैं सबमें कोई न कोई शक्ति विद्यमान है। पानी से भाफ, भाफ से मेघ और मेघो से फिर पानी। रुई से सूत, सूत से कपड़े और कपड़ो से फिर रुई। बीज से वृक्ष, वृक्ष से फूल, फूल से फल और फल से फिर बीज। इसी तरह संसार में उलट-फेर लगा रहता है और प्रत्येक पदार्थ में व्याप्त रहनेवाली शक्ति-विशेष इमका कारण है। जब से सृष्टि हुई तब से प्रकृति-पुरुष का झंझट जो शुरू हुआ तो अब तक बराबर चला जा रहा है। यदि प्रकृति निर्बल और पुरुष प्रबल हो जाता है तो उसे विद्वान् लोग उत्क्रान्ति कहते हैं और इसकी विपरीत घटना को अप- क्रान्ति। संसार में जितने व्यापार हैं सबका कारण इस उत्क्रान्ति और अपक्रान्ति ही के आघात-विधात हैं। जिन नियमों―जिन सिद्धान्तों―के अनुसार यह सब होता है उनकी विवेचना करनेवालों का नाम तत्त्वदर्शी है। ऐसे तत्त्व- दर्शियों के शिरोमणि हर्वर्ट स्पेन्सर का संक्षिप्त चरित सुनिए।