पृष्ठ:विदेशी विद्वान.djvu/२१

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हर्बर्ट स्पेन्सर

इसके बाद स्पेन्सर “यकनोमिस्ट” (Economist) नामक एक सामयिक पुस्तक का सहकारी सम्पादक हो गया और कोई ५ वर्ष तक बना रहा। सम्पादकता करना और लेख लिखना ही अब उसका एक मात्र व्यवसाय हुआ। इसमें उसने बहुत तरक्क़ी की। कुछ दिनों में वह लन्दन चला आया और वहीं स्थिर होकर रहने लगा। यहाँ पर उसने “व्यस्ट मिनिस्टर रिन्यू” (Westminister Review) में लेख लिखने शुरू किये। इससे उसका बड़ा नाम हुआ। लिखने का अभ्यास बढ़ता गया। धीरे-धीरे उसकी लेखन-शक्ति बहुत ही प्रबल हो उठी। ३० वर्ष की उम्र में उसने “सोशल स्टेटिक्स” (Social Statics) नाम की किताब लिखी। उसमें सामाजिक और राजनैतिक विषयों का उसने बहुत ही योग्यतापूर्ण विचार किया। उसकी विचार-श्रृँखला और तर्कनाप्रणाली को देखकर बड़े-बड़े विद्वानो ने दाँतों के नीचे उँगली दबाई। वह जितना ही निर्भय था उतना ही सत्यप्रिय भी था। उस समय तक इन विषयों पर विद्वानों ने जो कुछ लिखा था उसका जितना अंश स्पेन्सर ने प्रामादिक समझा सबका बड़ी ही तीव्रता से खण्डन किया। प्रायः सबसे प्रतिकूलता, सबकी समालोचना, सबका खण्डन उसने किया। किसी को आपने नहीं छोड़ा। पर इस पुस्तक का आदर जैसा होना चाहिए था नहीं हुआ।

स्पेन्सर की बुद्धि का झुकाव विशेष करके सृष्टि-रचना और अध्यात्म-विद्या की तरफ़ था। यह प्रवृत्ति प्रतिदिन