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विदेशी विद्वान्

ही समय में वह सात दफ़े छपी। आपकी योग्यता से प्रसन्न होकर अमेरिका के अधिकारियों ने वाशिंगटन में आपको कृषि- विभाग का डाइरेकृर बनाना चाहा। पर इस पद को लेने से भी आपने इनकार कर दिया। और भी कई अच्छे-अच्छे कास आपको मिलते थे। पर उन्हें भी आपने नहीं मँज़ूर किया।

१८५८ में आप इँगलेड गये। वहाँ आपने अपने कृषिज्ञान को और भी वृद्धि की। अमेरिका लौटकर दो किताबें और आपने कृषि पर लिखी। इससे आपका और भी नाम हुआ।

कर्नल आलकट कुछ दिन तक एक अख़बार के सम्पादक भी रहे थे। अख़बारों में आपने कुछ दिन तक लेख भी दिये थे।

जब अमेरिका के उत्तरी और दक्षिणी राज्यो में लड़ाई शुरू हुई तब आलकट साहब फ़ौज में भरती हो गये। लड़ाई में आपने बड़ी बहादुरी दिखाई और अपने काम से अफ़सरों को बहुत प्रसन्न किया। इसके बाद उन्हें एक ऐसे मामले की तहक़ीक़ात का काम दिया गया जिसमे गवर्नमेट का बहुत सा रुपया लोग खा गये थे। इस काम में उन्हें लोग रिश्वत देने, और रिश्वत न लेने पर, धमकाने से भी बाज़ न आये। पर आलकट साहब इससे ज़रा भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने बड़ी ही योग्यता से काम किया। फल यह हुआ कि अपराधी दस-दस वर्ष के लिए जेल भेजे गये। इस काम से साहब ने बड़ी नेकनामी पाई। बड़े-बड़े अफ़सरों ने उनकी प्रशंसा की और बिना माँगे प्रशंसापूर्ण पत्र भेजे।