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पृष्ठ:विदेशी विद्वान.djvu/४७

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मुग्धानलाचार्य्य

"प्रोफेसर" कहलाता है। आचार्य्य मुग्धानाल इसी पद पर अधिष्ठित हैं।

मुग्धानलाचार्य वेदों के बहुत बड़े ज्ञाता हैं। वैदिक साहित्य की नस-नस से आप वाकिफ़ हैं। वेनफी, रोट और मोक्षमूलर से आपने वेद पढ़े हैं। पश्चिमी दुनिया मे इस त्रिमूर्ति को वेदज्ञ-शिरोमणि कहना चाहिए। इसी से आचार्य्य मुग्धानल वेद-विद्या मे इतने निष्णात हैं। इसके सिवा काव्य, कोश, व्याकरण आदि विषयों में भी आपकी अच्छी गति है, पर विशेष करके आप वेदों ही के अध्ययन और वेदों ही के तत्त्वार्थ-प्रकाशन मे लीन रहते हैं। आपने एक संस्कृत-कोश भी प्रकाशित किया है; एक संस्कृत-व्याकरण भी लिखा है। कितने संस्कृत-ग्रन्थों का आपने सम्पादन किया है, इसकी तो गिनती ही नहीं। हम उनके नाम देने में असमर्थ हैं। हमे सबके नाम ही नहीं मालूम, दें कैसे।

डाकृर मेकडॉनल ने एक बहुत महत्त्व-पूर्ण पुस्तक लिखी है। उसमे आपने वैदिक देवताओं का वर्णन बड़ी ही योग्यता से किया है। वेदों मे जो कितनी ही कथायें और अन्योक्तियाँ हैं उन सबका डाकृर साहब ने उसमें विचार किया है। उसके लिखने मे आपने बड़ा पाण्डित्य दिखाया है; बड़ा परिश्रम किया है। पण्डित शिवशङ्कर शर्मा जी ने "त्रिदेव-निर्णय" नाम की एक पुस्तक लिखी है। उसकी समालोचना सरस्वती में निकल चुकी है। पण्डितजी को चाहिए कि आचार्य्य