मुग्धानल की यह पुस्तक अवश्य पढ़ें। आचार्य्य ने एक और भी प्रगाढ-पाण्डित्य-पूर्ण ग्रन्थ लिखा है। वह छप रहा है। अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ। यह ग्रन्थ वैदिक व्याकरण है। कई वर्षों के सतत परिश्रम से आपने इसे लिख पाया है। प्रकाशित होने पर, सुनते हैं, यह ग्रन्थ अपने ढँग का एक ही होगा। आपका लौकिक व्याकरण प्रकाशित हुए बहुत दिन हुए; अब वैदिक व्याकरण भी प्रकाशित होने जाता है। दोनों व्याकरणों के आप उत्कृष्ट ज्ञाता मालूम होते हैं।
पर आचार्य्य मुग्धानल का, संसार को चकित करनेवाला, कार्य्य अभी होने को है। जिन दो ग्रन्थो का नाम ऊपर हमने दिया है उन्हे इस “महतो महीयान्” कार्य्य की भूमिका मात्र समझिए। आप ऋग्वेद का एक सर्वसुन्दर अनुवाद अँगरेज़ी भाषा में लिखकर प्रकाशित करना चाहते हैं। यह अनुवाद आपका “Complete” (पूर्ण) होगा और “Scientifie” ( शास्त्रसम्मत अथवा विज्ञानसिद्ध ) भी होगा। इसके लिए आप अभी से तैयारियाँ कर रहे हैं। शीघ्र ही आप उसका आरम्भ करनेवाले हैं। विदेशी विद्वानों की राय है कि ऐसा अनुवाद कहीं अब तक प्रकाशित नहीं हुआ। “Sacred Books of the East” ( पौर्वात्य पवित्र-पुस्तक-माला ) में जो अनुवाद निकला है वह पूरे का दशांशमात्र है।
आचार्य्य महाशय की महत्त्वाकांक्षा यहीं तक न ममझिए। आप ऋग्वेद का अनुवाद करके एक और बृहद् ग्रन्थ लिखने