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मुग्धानलाचार्य्य

का इरादा रखते हैं। आप जो इस देश में विचरने आये थे उसके कई मतलब थे। एक मतलब आपका था-एक बहुत बड़े कोश के लिए सामग्री एकत्र करना। इसमें भारतवर्ष की पौराणिक और धार्मिक बातों का भाण्डार रहेगा। प्रत्येक बात का-प्रत्येक कथा का प्रत्येक धार्मिक विचार का―ऐतिहा- सिक रीति से विचार किया जायगा। इसमे जगह-जगह पर चित्र भी रहेंगे। सारा कोश सचित्र निकलेगा।

आक्टोबर १९०७ में आचार्य्य ने भारतभूमि में पदार्पण किया था। आप कोई ६ महीने इस देश में घूमे। आपने इस देश के प्रसिद्ध-प्रसिद्ध प्राचीन स्थानों में भ्रमण किया। हिन्दू-धर्म्म क्या चीज़ है, इसको ध्यान से देखा। आपकी इच्छा हस्तलिखित पुरानी संस्कृत-पुस्तकें प्राप्त करने की भी थी। शायद बहुत सी पुस्तकें आप कौडी-मोल विलायत ले भी गये हों। एक अख़बार में हमने पढ़ा था कि यहाँ के "Native" (एतद्देशीय) संस्कृत-विद्वानों से मिलकर संस्कृत- विद्या की उन्नति के विषय मे कुछ सूचनाये भी करने का आप इरादा रखते थे। भारतवर्ष में जितने अच्छे-अच्छे संस्कृत- पुस्तकालय हैं, जितने अच्छे-अच्छे प्राचीन-वस्तु-संग्रहालय हैं, जितने अच्छे अच्छे कालेज हैं सब देख-भालकर तब आप स्वदेश को लौटे हैं।

डाक्टर मेकडॉनल विदेशी होकर भी संस्कृत से इतना प्रेम रखते हैं। सात समुद्र पार करके आप यहाँ आये। बहुत