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विदेशी विद्वान्


गया है। विशाखा नक्षत्र मे दो तारे हैं। इसी से इस शब्द को द्वि-वचन में रखकर शकुन्तला की दोनो सखियों को कवि ने विशाखा बनाया है। रही शशाङ्क-लेखा सो उससे मतलब शकुन्तला से है। प्रियंवदा और अनसूया नामक उसकी दोनो सखियों के द्वारा शकुन्तला ही का अनुवर्तन करने की बात कवि ने दुष्यन्त के मुँह से पूर्वोक्त वाक्य में कही है। सो उसके समझान में, देखिए, विलियम्स साहब ने कैसा अर्थ का अनर्थ कर डाला। ऐसे ही आचार्यों के पढ़ाये साहब पण्डित इस देश मे आकर धर्मशास्त्र के ग्रन्थिल विषय बिना पण्डितो की मदद के जान लेगे और न्यायाधीश के आसन पर बैठकर दूध की तरह साफ़ स्वच्छ न्याय करेगे!

सच तो यह है कि इन साहब पण्डितों ने जो किसी- किसी विषय मे विशेष पारदर्शिता दिखलाई है उसका कारण वही गुणदोष-विवेचना-ज्ञान-हीन पण्डित हैं जिन्हे मुग्धा- नलाचार्य इतनी तुच्छ दृष्टि से देखते हैं। वूलर, कीलहार्न. पीटर्सन, आदि ने जो बड़ी-बडी किताबें लिख डालीं सो इस देश के भोले-भाले स्थूलदर्शी पण्डितों ही की कृपा की बदौ- लत। यदि वे यहाँ वर्षों इन पण्डितो से सबक़ न सीखने तो वेदों के विषय मे चाहे भले ही मनमानी कल्पनायें किया करते, पर और विषयों मे कलम उठाने का साहस शायद ही उन्हें होता। फिर भी, पण्डितो से संथा लेकर भी, इन लोगों ने कोई-कोई बड़ी ही हास्यास्पद भूले की हैं। बूलर साहब ने