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विदेशी विद्वान्


अर्थ मे प्रयोग किया है! सम्भव है, इस शब्द का अर्थ “गोद” भी होता हो। इसके प्रमाण अँगरेज़ी-विद्या-विशारद विद्वान् हैं। वही इसका निर्णय करे।

डाकूर मेकडॉनल ने अपने संस्कृत-भाषेतिहास के १२वें अध्याय में छोटे-छोटे काव्यों पर भी कुछ लिखा है। ऋतु- संहार की आपने बड़ी तारीफ़ की है। इस काव्य के तीसरे सर्ग में शरहतु का वर्णन है। उसका आदिम श्लोक है―

काशांशुका विकचपद्ममनोज्ञवक्ता
सोन्मादहँसरवनुपुरनादरम्या।
आपक्वशालिरुचिरा तनुगात्रयष्टिः
प्राप्ता शरन्नववधूरिव रूपरम्या॥

अर्थात् नव-विवाहिता वधू की तरह रमणीय रूपवाली शरद् आ गई। काश अथवा कास के फूल इसकी पोशाक है। खिला हुआ मनोमोहक कमल-समूह इसका मुख है। उन्मत्त हँसों का शब्द इसके नूपुरों की ध्वनि है। पके हुए धान के खेतों की शोभा इसके पतले गात की सुवरता है। इसका अर्थ मुग्धानल साहब करते हैं―

“Next comes the autumn, beautoous as a newly wedded bride, with face of full-blown lotuses, with robe of sugarcane and ripening rice, with the cry of flamingoes lepresenting the tinkling of her anklets”