की। शायद अध्यापक मोक्षमूलर ही की सिफारिश से उन्हें
पूने के डेकन-कालेज मे संस्कृताध्यापक की जगह मिली।
आपने भारत आने के पहले ही योरप में अपने संस्कृत-ज्ञान के
विषय मे बहुत कुछ नामवरी प्राप्त कर ली थी। आप अच्छे
आलोचक और गुण-दोष विवेचक समझे जाने लगे थे ।
जर्मनी के लेपज़िक नगर से आप शान्तनव के फिट-सूत्रों का
सम्पादन करके, १८६६ ईसवी मे, उन्हे प्रकाशित कर चुके थे।
उनको देखने से मालूम होता है कि व्याकरण में उस समय भी
आपको अच्छा अभ्यास था।
फिट-सूत्रों के प्रकाशित होने के कुछ ही समय बाद आपको भारतवर्ष आना पड़ा। यहाँ आप पूना के डेकन-कालेज में भारतवासियो को संस्कृत पढ़ाते रहे। डाक्टर साहब के दो- एक छात्रो से हमने सुना है कि आप अच्छी संस्कृत पढ़ाते थे। पर आपका संस्कृत-उच्चारण सुनकर बड़ा कौतूहल होता था।
भारत में आकर अनन्त शास्त्री पेढरकर से आपने यथा- नियम व्याकरण पढ़ा। कोई बात पढ़ने से आपने बाकी नहीं रक्खी। आप अच्छे वैयाकरण हो गये। इसका फल यह हुआ कि आपने नागोजी भट्ट के 'परिभाषेन्दुशेखर' का सम्पादन करके उसे कई भागों में प्रकाशित किया। उसका आपने अनुवाद भी अँगरेजी मे किया और यथास्थान टीका-टिप्पणियों से भी उसे भूषित किया। इतने ही से आपको सन्तोष न हुआ। आपने पतञ्जलि के व्याकरण-महाभाष्य का भी