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विदेशी विद्वान्


सम्पादन अँगरेज़ी मे किया। नौ-दस जिल्दों में यह पुस्तक समाप्त हुई। आपने बड़ा काम किया। इन ग्रन्थों के सिवा आपने व्याकरण पर और भी कितने ही छोटे-मोटे लेख लिखे । वे सब प्रकाशित हो चुके हैं।

इसके बाद आपका ध्यान भारतवर्ष के प्राचीन शिलालेखों, ताम्रपत्रों और दानपत्रों की ओर गया। इधर भी आपने अच्छा काम किया। कितनी ही नई-नई बातें मालूम की। कालिदास और माघ के स्थिति-समय के विषय मे आपने कई खोजें की। चेदि-संवत् के प्रारम्भ का भी आपने निश्चय किया। प्राचीन चोल और पाण्ड्य देशों के इतिहास से सम्बन्ध रखनेवाले कई महत्त्वपूर्ण लेख भी आपने लिखे। एक काम आपने बहुत बड़ा किया। जितने प्राचीन शिलालेख आदि इस देश मे तब तक निकले और छापे गये थे उन सबकी एक तालिका बनाकर आपने प्रकाशित कर दी।

कोई ४२ वर्ष हुए जब डाक्टर कीलहार्न पहले पहल इस देश में आये थे। बहुत वर्षों तक पूने में अध्यापना करके आप जर्मनी लौट गये। वहाँ आपको गाटिजन के विश्व- विद्यालय में संस्कृताध्यापक की जगह मिली। स्वदेश पहुँचकर भी आप ग्रन्थ-सम्पादन करने और नई-नई बातें खोजने में बराबर लगे रहे। इस देश से जर्मनी लौट जाने पर डाक्टर बूलर ने एक ऐसी पुस्तक निकालना प्रारम्भ किया जिसमें आर्यों से सम्बन्ध रखनेवाली बातों के तत्त्वानुसन्धान-विषयक