पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१०

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विद्यापति । दूती । १४ कि आरे नव जौवन अभिरामा । जत देखल तत कहहि न पारिअ छओ अनुपम एक ठामा ॥ २ ॥ हरिन इन्दु अरविन्द करािण हिम पिक चूक अनुमानी । नयन बयन परिमल गति तनु रुचि अओ अति सुलालित बानी ॥ ४ ॥ कुच जुग पर चिकुर फुजि पसरल ता अरुझायल होरा । जनि सुमेरु उपर मिल ऊगल चॉद विहुन सवे तारा ॥ ६ ॥ लौल कपोल ललित माल कुण्डल अधर विम्ब अध जाई । भौंह भमर नासा पुट सुन्दर से देख कर लजाई ॥ ६ ॥ भनइ विद्यापति से बर नागरि आन न पावए कोई ।। कंसदलन नारायन सुन्दर तसु रङ्गिनी पए होई ॥ १० ॥ (३) छओ अनुपम एक ठामा=एक स्थान में छ अनुपम वस्तु देखी । ( ३, ४ ) छ, सामग्री की वर्णना–हरिनतुल्य नयन, इन्दुबयन, अरविन्द परिमल, फरिणी गति, | हिम तनुरुचि, पिक सुललित बानी । (५) फुजि परसल=खुल कर फैल गया। ( ६ ) अरुझायल=लपट गया। (७ ) विहुन= विहीन । अध जाई=नीचे जाती है। तुलना में बिम्य हार मान (८) कीर=शुक पक्षी । (१०) तसु=(तस्य) तिसका।