पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१०४

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विद्यापति । सखी । १६१ सामरि हे झामर तोर देह । की कह कइसे लावलि नेह ॥ २ ॥ नीन्दे भरल अछ लोचन तीर । अमिय भरमे जनि लुबुध चकोर ॥ ४ ॥ निरसि धुसर करु अधर पवार । कोने कुबुधि लुड मदन भण्डार ॥ ६ ॥ कोने कुमति कुच नखे खत देल । हाए हाए सम्भु मगन भए गेल ॥६॥ दमन लता सम तनु सुकुमार । फूटल वलय टूटल गृम हार ॥१०॥ केस कुसुम तोर सिरक सिन्दूर । अलक तिलक हे सेहो गेल दूर ॥१२॥ भनइ विद्यापति रति अवसान । राजा सिवसिंह ई रस जान ॥१४॥ सखी । १६२ पुछम ए सखि पुछमो तोय । केलि कला रस कहांबे मोय ॥ ३॥ वेश भूपण तोर सब छिल पूर। अलक तिलक मिटि गैलर ॥ ° कुसुम कुल सच भेल भिन भीन । अधरे लागल दशनक चीन ।। ६ कोने अबुझ कुचे नख खत देल । हा हा शम्भू भगन भई गेल ॥ भनइ विद्यापति सुन वर नारि । सय रस लेल, मुरारि ।