पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१३०

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| १२८ विद्यापति ।

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= = = = सखी । कुन्तल तिलक बिराज मुख शोभित सदुर बिन्दु । हेमलतामे समारु विधि कवि रवि तारा इन्दु ॥ २ ॥ इन्दुवदनि धनि नयन बिशाला । कमल कलित जनि मधुकर माला ॥ ४ ॥ देखालि कलावति अपरुव रमनी । जनि आइलि सुरपुर गजगमनी ॥ ६ ॥ बेनी विमल बिराज तनु बस कुसुमावले हार । श्याम भुजङ्गम देखिकहु कियो काम परहार ॥ ८ ॥ करु परहार मदन सर बाला। कुटिल कटाख बान कनियाला ॥१०॥ कम्बु कण्ठ मृणाल भुज चलित पयोधर हारे । कनक कलस रसे पृरि रहु सञ्चित मदन भंडार ॥१२॥ मदन भंडार पयोधर गोरा । जनि उलटाओल कनक कटोरा ॥१४॥ श्यामा सुलोचनि सुरति रति अपरुचे भूषन सार । विद्यापति कविराज कह सुफले करथु अभिसार ॥१६॥ सखी । २५२ कुन्द कुमुद गजमोतिम हार । पहिरल हृदय झेपि कुचभार ॥ ३ ॥ थोरहि शशधर किरण विद्यार। ऐसन समय कयल अभिसार ॥ ४ ॥ चहुदिश सचकित नयन निहार । मदन मदालसे चलइ न पार ॥ ६ ॥ मिलाले निकुञ्जे कुन्ज नृप पास । कह कविशेखर केलि विलास ॥ ८ ॥