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पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१३२

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१२६ विद्यापति । = = == सखी । २५१ कुन्तल तिलक विराज मुख शोभित सदुर बिन्दु । हेमलतामे समारु विधि कवि रवि तारा इन्दु ॥ २ ॥ इन्दुवदनि धनि नयन विशाला । कमल कलित जनि मधुकर माला ॥ ४ ॥ देखालि कलावति अपरुव रमनी । जनि आइलि सुरपुर गजगमनी ॥ ६ ॥ बेनी विमल बिराज तनु बस कुसुमावाल हार । श्याम भुजङ्गम देखिकहु कियो काम परहार ॥ ८ ॥ करु परहार मदन सर बाला । कुटिल कटाख बान कनियाला ॥१०॥ कम्बु कण्ठ मृणाल भुज वलित पयोधर होर । कनक कलस रसे पृरि रह साञ्चत मदन भंडार ॥१२॥ मदन भंडार पयोधर गोरा । जनि उलटाओल कनक कटोरा ॥१४॥ श्यामा सुलोचनि सुरति रति अपरुब भूषन सार ।। विद्यापति कविराज कह सुफले करथु अभिसार ॥१६॥ सखी । २५२ कुन्द कुमुद गजमोतिम हार । पहिरल हृदय झॉपि कुचभार ॥२॥ थोहि शशधर, किरण बियार । ऐसन समय कयल अभिसार ॥ ४ ॥ चहुदिश सचकित नयन निहार । मदन मदालसे चलइनपार ॥ ६ ॥ मिलाले निकुञ्जे कुज नृप पास । कह कविशेखर केलि विलास ॥ ८ ॥