पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

विद्यापति । 555 सखी। अलसे पुरल लोचन तोर । अमिञ मातल चाँद चार ॥ २ ॥ निचल भेउह जे ले बिसराम । रण जिनि धनु तेजल काम ॥ ४ ॥ अरे रे सुन्दर न कर लथा । उकुति वैकत गुपुत कथा ॥ ६ ॥ कुच सिरिफल करज सिरी । केसु विकसित कनअ गिरी ॥ ८ ॥ बहल तिलक उधसु केस । इस परिछल कामे सन्देस ।।१०।। (५) लथा=छलना । सखी । २६६ उधसल केश कुसुम छिरियाएल खण्डित दशन अधरे ।। नयन देखिय जनि अरुण कमल दल मधु लोभे वइसल भमरे ॥ २ ॥ कलावति कैतव न करह आज । कोन नागर सड़े रयनि गमलह कह मोहि परिहरि लाज ॥ ४ ॥ पीन पयोधर नखरेख सुन्दर करे राखहु को गोरि । मेरु शिखर नव उगि गैल शशधर गुपुति न रहालय चारि ॥ ६ ॥ वेकतेश्रो चेरि गुपुत कर कतिखन विद्यापति कवि भान ।। महलम जुगपति चिरेजिव जीवथु ग्यास देव सुरतान ॥ ८ ॥