पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१७०

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१६२ विद्यापति । सखी । ३१७ सुरत समापि सुतल वर नागर पानि पोधर यापी । कनक शम्भु जनि पूजि पुजारे धएल सरोरुहे झॉपी ॥ २ ॥ सखि हे माधव केलि बिलासे । मालति रमि अलि नाइँ अगोरसि पुनु रतिरक असे ॥४॥ वदन भेराए धएलन्हि मुखमण्डल कमल मिलल जनि चन्दा । भमर चकोर दुअो अरसाएल पीवि अमिञ मकरन्दा ॥६॥ भनइ अमिकर सुनह मधुरपति राधा चरित अपारे । राजा सिवसिंह रूपनरायन सुकवि भनर्षि कण्ठहारे ॥८॥ ठूती । ३१६ जलधररुच अम्बर पहिराउलि सेत सारङ्ग कर बीमा । सारङ्ग अदन दाहिन कर मण्डित सारङ्ग गति चलु रामा ॥२॥ माधव तेरे बोले आनल राही । सारङ्ग भास पास सञो अनलि तोरित पठावह ताही ॥४॥ सम्भू धरिनि वैरि अनि मेराउलि हरि सुत सुते धुनि भेला । अरुनक जाति तिमिर पिव ऊगल चन्द मलिन भए गेला ॥६॥ -१०-~