पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१७६

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विद्यापति । राधों और ननद की बातचीत । ३२६ जाहि लागि गेलि है ताहि कहाँ लइलि हे ता पति बइरि पितु कोही । अछलि हे दुख सुखे कहह अपने मुखे भूषन गमोलह जॉहा ॥२॥ सुन्दरि कि कए बुझाओब कन्ते । जन्हिका जनम होइते तोहे गेलिहे अइलि हे तन्हिका अन्ते ॥४॥ जाहि लागि गेलाहूं से चलि आएल ते मो धएलाहुँ नुकोई । से चलि गेल ताहि लए चललाहुँ तें पथे भेलि अनेआइ ॥६॥ सङ्कर बाहन खेड़ि खेलाइते मेदिनि बाहन आगे। जे सवे अछलि सड़े से सबे चललि भड़े उवरि अएलाहुँ अछ भागे ॥ जाहि दुइ खोज करइछह सासुन्हि से मिलु अपना सड़े भनइ विद्यापति सुन वरजङवति गुपुत नेह रतिरङ्गे ॥१०॥