पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१८०

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१७३ विद्यापति । ८५४०२०७४ ४५ राधा । दूरहि रहिय करिय मन आन । नयन पियासल हटले न मान ॥ २ ॥ हास सुधारस तसु मुख हेरि । बॉधलि ए वॉध निबी कत घेरि ॥ ४॥ की सखि करब धरव की गोय। करिय मान जौं आइति होय ॥ ६ ॥ धसमस करय रहओं हिय जॉति । सगर शरीर धरय कत भॉति ॥ ६ गोपहि न पारिय हृदय उलास । मूनलाहु वदन बेकत हो हास ॥१०॥ भनइ विद्यापति तोर न दोस । भूखल मदन बढावय रोस ।॥ १२ ॥ राधा । ३३५ जखने जाइश पिया सअनके पास । मन रह मान करब कत रास ॥ तसु कर परसे न रहए गेयान । नीबी कखने फूजए के जान ॥ ४ कोने पर पिया सौ करब सखि मान । मन मोर हरए मधथ पचवान ॥ ६ कि अरब मान मौ न मन थीर । कामक अएित तरुनि सार ।