पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१८७

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विद्यापति । ৭৩৩

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राधा । ३४४ आदरे अधिक काज नहिं वन्ध । माधव बुझल तोहर अनुबन्ध ॥२॥ आसा राखह नएन पठाए । कत खन कौसले कपट नुकाए ॥ ४ ॥ चल चल माधव तोह जे सन । ताके वोलिय जे उचित न जान ।। ६ ।। कसिम कसौटी चिह्नअ हेम । प्रकृति परेखिय सुपुरुख पैम ॥ ८ ॥ परिमले जानिय कमल पराग । नयने निवेदिअ नव अनुराग ॥ १० ॥ । भनई विद्यापति नयनक लाज । आदरे जानिअ आगिल काज ॥ १२ ॥ राधा । ३४५ माधव बुझल तोहर नेह ।। ओड धरइत हम राखि न पारिय प्राश की जइ देह ॥ २ ॥ तो सन माधव अति गुनाकर देखइत अति अमोल । जेहन मधुक माखल पाथर तेहन तोहर बोल ॥ ४ ॥ इ रीति दए हम पिरितिं लाल जोग परिनत भेल । अमृत वधि हम लता लागोल विपे फरि फरि गेल ॥ ६ ॥ भन विद्यापति सुनु रमापति सकल गुन निधान । अपन वेदन ताहि निवेदिअ जे परवेदन जान || ८ 23