पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१९८

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१८२ विद्यापति ।। --- --- - --- माधव । ३५६ काँ लागि बदन झाँपसि सुन्दरि | हरल चेतन मोर । पुरुष चधक भय न करह इ बड़ साहस तोर ॥ २ ॥ मानिनि आकुल हृदय मोर । मदन वेदन सहइत न पारिय शरन लेल तोर ॥ ४ ॥ किय गिरि बर कनय कटोर ता देखि लागय धन्द । ह्यिाक उपर शम्भु पूजित बेढि बालक चन्द ॥ ६ ॥ कर कमले। | परशइत चाहिय बिहि नह जदि वामा । तोहर चग्णे शरण लेल सदय होयब रामा ॥ ८ ॥ चञ्चल देखिअ ाकुल भेल | व्याकुल भेल चीत ।। कह विद्यापति सुनह युवति कानुक करह हीत ॥ १० ॥