पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२२१

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विद्यापति । २ ०७

- टूती । ४ ०५ जमुना तीर युवति केलि कर उठि उगल सानन्दा । चिकुर सेमार हार अरुझायल जूथे जूथे उग चन्दा ॥२॥ मानिनि अपुरुच तुअ निरमाने । पांचवाने जनि सेना साजलि अइसन उपजु मोहि भाने ॥४॥ अनि पुनिम ससि कनक थोए कसि सिरिजल तुअ मुख सारा । जे सवे उवरल काटि नडाओल से सवे उपजल तारा ॥६॥ उबरल कनक औटि बटुरायोल सिरिजल दुइ आरम्भा । सीतल छाह छैल छुइ छाडल छाडि गेल सवे दम्भा ॥८॥ ठूती । ४०६ सजल नलिनिदल सेज छाइअ परसे जी असिलाए । चन्दने नहि हित चान्द विपरित करव कोन उपाए ॥२॥ साजन सुदृढ़ कइए जान । तोहि विनु दिने दिने ननु खिन विरहे विमुख कान्ह ॥४॥ कारनि वैदे निरसि तेजलि आन नहि उपचार । एहि वेधि औषध तोहर अधर अमिय धार ॥६॥