पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२७०

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wwwwwwvvvvvvvww vvvvvvvvvv•••••••••••••••••••••••• २५४ विद्यापति । सरस कवि विद्यापति गाग्रोल रस नहि अवसान । राजा सिवसिंह रूपनरायन लखिमा देवि रमान ॥८॥ दूती । ५०४ दिवस मन्द भन न रहए सब खन विहि न दाहिन वाम लो । सेहे पुरुपवर जेहे धैरज कर सम्पद विपदक ठाम लो ॥२॥ माधव बुझन सवे अवधारि लो । जस अपजस दुअओ चिरे थाकए आओर दिन दुइ चारि लो ॥४॥ अपन करम अपनहि भेंजिय विहिक चरित नहि वाध लो । कातर पुरुप हृदय हारि मर सुपुरुप सह अवसाद लो ॥६॥ तीनि भुवन मही अइसन दोसर नही विद्यापति कवि भान ला " राजा सिवसिंह रूपनराएन लखिमा देवि रमान लो ॥८॥ राधा । ५०५ से भल जे वरु वसए विदेसे । पुछिअ पथुक जैन ? पिया निकटहि वस पुछो न पुछइ । एहन विरह दुख के दुई सह३ र पिया तोर रसिया । अवसउ दिन एक देत विहुसिया ॥ ६ ॥ मधुरिग्रो वचन सुन नहि काने । आव अवसेओ हमे तेजव परान ॥ भभई विद्यापति एहू रस भाने । राए सिवसिंह लखिमा देइ रमाने ॥१०॥ श्री हमे तेजव पराने ॥ ८ ॥