पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२९०

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विद्यापति ।

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૨૭૨ विद्यापते । राधा । धिक त्रिय कर जे प्रिय पर कोप । कुल कामिनि जने प्रेमक लोप ।। २ ॥ भल जन मह हो अपजस ख्यात । प्रियतम मनस होयव कात ॥ ४ ॥ एकसरि तारा केओ न देख । चढलि आकाश अमङ्गल लेख ॥ ६ ॥ अपने सुख हरि करि जनु मान । कविवर विद्यापति एह भान ॥६॥ माधव । ५४१ कुसमवान विलास कानन केस सुन्दर रेह । निविल नीरद रुचिर दरसए अरुण जनि निज देह ॥२॥ आज देखु गजराजगति वरजुवति त्रिभुवन सार । जनि काम दैवक विजय वल्ली विहलि विहि संसार ॥४॥ सरद ससधर सरिस सुन्दर वदन लोचन लोड ।। विमल कच्चन कमल चढ़ि जनि खेलु खञ्जन जोल ॥६॥ अधर पल्लव नव मनोहर दसन दालिम जोति । । जाने विमल विद्मदल सुधारसे सींचि धरु गजमोति ॥८॥ मत्त कोकिल वेनु वीनानाद त्रिभुवन गस । मधुर हासे पसाहि आनलि करए वचन विलास ॥१०॥ अमर भूधर सम पयोधर महध मोतिम हार। जमि हेम निम्मित सम्मुसेखर गङ्ग निम्मल धार ॥१२॥