सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२७५
विद्यापति ।

________________

विद्यापति । ३७५

सखी । ५४६ देव अराधने चलु गोरी । सङ्गहि सम वय नवीन किशोरी ॥ ३ ॥ चन्दन कुडुकुम अरु फुल माल । लेअल वहु उपहार रसाल ॥ ४ ॥ चलु वर नागरि सङ्गव माह । सचकित नयने दिक दश चाह ॥ ६ ॥ ऐसन समय निविड़ वन माज । मिलल एकल विदगध राज ॥ ८ ॥ हेरि सुवदनि अति चमकित भैलि । कह कविशेखर दुहु जन मेलि ॥१०॥ सखी । ५४७ राधा माधव सुमधुर केलि । दुहु रूपे दुहु जन निमगन भेलि ॥ २ ॥ उलसित विनोद नागरवर कान। कई अमिय वानी हसित वयान ।। ४ ।। | सुन्दरि की कहव तोहर वखान । अलपे जितल तुहु इह पचवान ॥ ६ ॥ गरुअ कमान नयान कोने एक । अरु एक ईपत हास परतेक ॥ ८ ॥ | करहि सुकुसुम ताहि एक होइ । कुञ्चित केश दरशे एक सोइ ॥१०॥ श्रेङ्गहि अङ्ग किरण कत भेल । हरि पराभव भै चलि गेल ।।१२॥ | कह कविशेखर की कहब कान 1 लाख वयाने नहि होत परमान ॥१४॥ सखी । ५४८ ॐ सुख हेरइते दह भेल धन्द । राही क्ह तमाल माधव कह चन्द ॥ २ ॥ पुतली जनि रडू दुह देह । न जानिय प्रेम केहन म, नेह ॥ ४