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पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३

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विद्यापति ।
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वन्दना।
दूती।


नन्दकनन्दन कदंबेरि तरु तरे धिरे धिरे मुरलि बलाव ।
समय संकेत निकेतन बइसल बेरि बेरि बोलि पठाव ॥ २ ॥
सामरी तोरा लागि अनुखने विकल मुरारि ॥ ३ ॥
जमुनाक तिर उपबन उदवेगल फिरि फिरि ततहि निहारि ।
गोरस बिके अवइते जाइते जनि जनि पुछ वनमारि ॥ ५ ॥
तोंहे मतिमान सुमति मधुसूदन वचन सुनह किछु मोरा ।
भनइ विद्यापति सुन बरजौवति बन्दह नन्दकिसोरा ॥ ७ ॥

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१) बलाव= बजाता हे ।
३) सामरी=श्यामा, सुन्दरी ।
४) उदवेगल=उद्वेग सहित ।
५) गोरस= दुग्ध ।
६) मतिमान= अनुरक्त । हे सुमति, मेरी बचन कुछ सुनो, मधुसूदन तुम्हारे प्रति अनुरक्त हें ।
७) भनइ= बोलता है । बरजौवति=जेष्ठ युवति ।