पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
विद्यापति ।

------------------

राधा वन्दना ।


देख देख राधा रूप अपार ।
अपरुव के विहि आनि मिलाओल खिति तल लावनि सार ॥ २ ॥
अङ्गहि अङ्ग अनङ्ग मुरछायत हेरए पड़इ अथीर ।
मनमथ कोटि मथन करु ये जेन से हेरि महिमह गीर ॥ ४ ॥
कत कत लखिमी चरनतल नेउछय रङ्गिनि हेरि बिभोरि ।
करु अभिलाष मनहि पदपङ्कज अहोनिशि कोरि अगोरि ॥ ६ ॥
       {{{1}}}


(४) महिमह=धरणीतल।
(५) नेउछय = नौछावर। बिभौरि=विह्वल।


वयःसन्धि ।
दूती ।



शैशव यौवन दुहु मिलि गेल । श्रवणक पथ दुहु लोचन लेल ॥२॥
बचनक चातुरि लहु लहु हास । धरनिये चाँद करल परगास ॥४॥
मुकुर लइ अव करत शिङ्गार । सखि पूछइ कैसे सुरत बिहार ॥६॥
निरजने उरज हेरइ कतवेरि । हसइत अपन पयोधर हेरि ॥८॥
पहिल बदरि सम पुन नवरङ्ग । दिने दिने अनङ्ग अगोरल अङ्ग ॥१०॥
माधव पेखल अपरुव बाला । शैशव यौवन दुहु एक भेला ॥१२॥
विद्यापति कह तुहु अगेयानि । दुहुएक योग इहके कह सयानि ॥१४॥
       {{{1}}}


(३) लहु = लघु ।
(९) बदरि= बेर। नवरङ्ग = नारङ्गी, नींबू ।
(१०) अगोरल =घेर लिया, पहरा दिया ।
(११) पेखल = देखना ।