पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३००

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विद्यापति ।

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३८२ विद्यापति । ताहे बेकत भेल सकल शरीर । तहि उपनीत समुख यदुवीर ॥ ६ ॥ विपुल नितम्व अति वेकत भेल । पालटि तापरकुन्तल देल ॥८॥ उरज उपर यब देयल दीठ । उर मेरि बैठलु हरि करि पीठ ॥१०॥ हासि मुख माङये ढीठ मधाई । तनु तनु झॉपिते झपन न जाइ ॥१३॥ विद्यापति कहे तुहु अगेयानी 1 पुन काहे पलटि न पैठाले पानी ॥१४॥ राधा । ५६ ३ ए सखि ए सखि कि कहब हाम् । पिया मोर विदगध बिहि मोर वाम ॥ कत सुखे अति पिया मफु लागि । दारुण शाश रहल तहि जाग में धरे मोर अंधियार कि कहब सखि । पाशे लागल पिया किछुड ने दखि ॥६ चित मोर धस धस कहिते न पाइ । ए बड़ मन दुख रहे चिरथाः विद्यापति कह हुँहु अगोयानि । पिया हिया करि काहे फेरि बयान " राधा । ५६४ शाश धुमायत करे अगर । तहि अनि ढीठ पिठ रहु चार ॥ इ । अाजुक चातुरि रहव कि जाइ ।। ४ ।। नहि कर आरति ए अवुध नाह । अव नहिं होएत वचन निरवाह । पीठ ग्रालिङ्गने कत सुख पाव । पानिक पियास दुधे किये जात्र फत मुख मेरि अधर रस लेल । कत निसवद कए कुचे कर दल ।