पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३०७

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२८७
विद्यापति ।

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विद्यापति । २८७ राधा । पालङ्के शयन घूमे अचेतन दीघल बहय शास । दीप कर लइ लुबुध माधव आयोल हमर पासे ॥२॥ सखि हे कलुसे ऐसन ढीठ। हरपे परशे अधिक लालसे विपम तकर दीठ ॥४॥ जागइव डरे लहु लहु करे बसन कयल दूरे । कनक गागरि वेकत निहारि निज मनोरथ पूर ॥६॥ दीपक छटाय झटिते जागल भरम कहल चोर ।। डरे चोर पासे अन्धारे पइसल से मोरे कयल कोर ॥८॥ हासिक रभसे वोधि भुजपाशे विलसे अधिक सुख । चम्पति पति | वेकत कहय | चौरक निलज मुख ॥१०॥