पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३१३

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विद्यापति । २६.१ निधन उर चिर हरी | करे कच धरी अधर पिचए मुख हेरी ॥४॥ पुनु पुनु भौरा परस कुच मोरा निधने पाओल जनि कनय कटोरा ॥५॥ अरे जुवती बुझसि जुगुती दोसरे मधुप मधुरपती ।।६।। तोरे अनुमाने विद्यापति भाने राए सिवसिंह लखिमा दैइ रमाने ।।७।। सखी । ५६१ कह कह साख निकुञ्ज मन्दिरे आजु कि होयल धन्द । चपले झोपल जनि जलधर नील उतपल चन्द ॥२॥ फणी मणिवर उगरे निरखि शिखिनी अनित गेल । सुमेरु उपरे सुरतरङ्गिनी केवल तरल भेल ॥४॥ किनी कङ्कन कर कलरव नूपर अधिक ताहे । सुकीम नटनै तुरि जति कह ऐसन सकल शाह न कर गोपन निज परिजन इह बुझे अनुमान पति कृत कृपाय ताहारे के न जान इह गान ॥८॥