पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३१५

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विद्यापति । ३६.३। सखी । ५८४ कुल चिकुरे वेढल मुख सोभ । राहु करल ससिमण्डल लोभ ॥ २ ॥ बड़ अप्रुव दुइ चेतन मैले । विपरित रति कामिनि कर केलि ॥ ४ ॥ कुच विपरीत विलम्वित हार । कनक कलस वम दूधक धार ॥ ६ ॥ । | पिम मुख समखि चुम्व तेज औज । चान्द अधोमुख पिवए सरोज || ८ || किङ्किनि रटित नितम्वनि छाज । मदन महारथ बाजन वाज ॥१०॥ फूजल चिकुर माल धर रङ्ग । जनि जमुना मिलु गङ्ग तरङ्ग ।।१२।। वेदने सहान सम जल विन्द । भदने मोति लए पूजल इन्दु ॥१४॥ भनइ विद्यापति रसमय वानी | नागरी रम पियु अभिमत जानी ॥१६॥ माधव । ५८५ विगलित चिकुर मिलित मुखमण्डल चॉदै वेढल धनमाला । मणिमय कुण्डल स्रवने दलित भेल घाम तिलक वह ला ॥२॥ सुन्दर तुय मुख भट्ठलदाता । रति विपरीत समर याद राखवि किं करव हारे हरे धात किङ्किनि किनि किनि कडून कुन कुन धन धन रतिरो मदन पराभव मानल जय जय डा तिले एकु जयन सवन रख करइते होयन सेन विद्यापति कवि ओ रस गायत जामुन मिट में हीरे हर धाता ॥४॥ 7 वन घन नृपर वाजे । जय जय डिउम बाजे ॥६॥ इते हेयन्न सैनक भङ्ग। न मिलल गई तो