पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३२३

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विद्यापति । पीअर पॉडरि महुअरि गावए फाहकार धथुरा। नागेसर काल सेख धूनि पुर तकर ताल समतुला ॥१०॥ मधु लए मधुकरे वालक दृय हलु कमल पखुरिया झुलाइ । | पौंअनाल तौरि करि सुत चॉधल केसु कइलि वघनाही ।।१२।। नव नव पल्लव सैज ओझाओल सिर दहु कदम्वेरि माला । वैसलि भमरी हर उदगारए चक्का चन्द निहारा ॥१४॥ कनए केसुआ सुति पत्र लिखिए हलु रासि नछत्र कए लोला । कोकिल गणित शुणित भल जानए रितु वसन्त नाम थोला ॥१६॥ वाल वसन्त तरुण भए धाश्रोल बढए सकल ससारा ॥१७॥ दखिन पवन घन आङ्ग उगारए किसलय कुसुम परागे । सुललित हार मजरि घन कजल अखितौं अञ्जन लागे ॥१६॥ नव वसन्त रितु अनुसर जौवति विद्यापति कवि गाया । राजा सिवसिंह रूपनराएन सेकल कला मन भाया ॥२२॥ सखी । ६ ०२ नाच रे तरुनि तेज लाज । आएल वसन्त रितु वणिक राज ॥ २ ॥ हस्तनि चित्रिनि पदुमिनि नारि । गोरि सामरि एक बुढ़ि वारि ॥ ४ ॥ विविध भॉति कएलह्नि सिङ्गार | परिहन पटोर गिम फुल हार ॥ ६ ॥ *अगर चन्दन घसि भर कटोर । ककरहु खोजीछा कपुरु तर ॥ ८ ॥ भी कुकुम मरदाव ऑग । ककरहु मोति भल छाज,माग ॥१०॥