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पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३२४

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३०३ विद्यापति ।। 1444 सखी । ६०३ मलयानिले साहर डार डोल । कल कोकिल रव मअन बोल ॥ २ ॥ हेमन्त हरन्ता दुहुक मान । भमि भमर करए मकरन्द पान ॥ ४ ॥ रङ्गु लागए रितु वसन्त । सानन्दित तरुणी अवरु कन्त ॥ ६ ॥ सारङ्गिनि कउतुके काम केलि । माधव नागरि जन मेलि मेलि ॥८॥ सखी । ६०४ चल देखने जाउ रितु वसन्त । जहाँ कुन्द कुसुम केतक हसन्त ॥ २ ॥ जहाँ चन्दा निरमल भमर कार । रयनि उजागरि दिन अन्धार ॥ ४ ॥ मुगुधाल भामिनि करए मान । परिपन्तिहि पेखए पञ्चवान ॥ ६ ॥ भनइ सरस कवि कण्ठहार । मधुसूधन राधा वन विहार ॥ ६॥ सखी । ६०५ आएल ऋतुपति राज वसन्त । धाओल अलिकुल माधवि पन्थ ॥ ३ ॥ दिनकर किरण भैल पय गण्ड । केशरकुसुम धयल हेमर्दण्ड ॥ ४ नृप आसन नत्र पीठलपात । कञ्चन कुसुम छत्र धरु माथ ॥ ६ ॥ मौलि रसाल मुकुल भेल ताय । समुखाहि कोकिल पञ्चम गयि ॥