पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३४४

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३२० विद्यापति ।' राधा। ६४३ वारि वयस तोज गेह । पिअ मन ओहय सन्देह ॥ २ ॥ तनि मन आछे ओह भान । एतय समय भेल आन ॥ ४ ॥ तोरित पठाओव सन्देस । आवे नहि उचित विदेस ॥ ६ ॥ जौवन रूप सिनेह । सेहे सुमरि खिन देह ॥ ८॥ विद्यापति कवि भान । अचिर होयत समाधान ॥१०॥ राधा । ६ ४ ४ चड़ि बड़ाइ सबे नहि पावइ विधि निहारइ जाहि । अपन वचन जे प्रतिपालय से बड़े सबहु चाहि ॥२॥ साजन सुजन जन सिनेह ।। कि दिय अजर कनक ऊपम कि दिय पासान रेह ॥४॥ ओ जदि अनल आनि पजारिय तइ न होय विराम । इ जदि असि कि कसि कई काटी तइ न तेजय ठाम ॥६॥ गरले आनि सुधारसे सिञ्चिय शीतल होमाय न पार । जइओ सुधानिधि अधिक कुपित तइओ न वरिष खार ॥८॥ भनइ विद्यापति सुन रमापति सकल गुण निधान । अपन वेदने ताको निवेदिय जे परवेदन जान ॥१०॥