पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३५३

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विद्यापति । ३२६ । ६५६. राधा । हम अभागिनी दोसर नहि भेला । कानु कानु करि जनम वहि गेला ॥ २ ॥ आओवकरि मोर पिया चलि गेला । पुरवक जत गुण विसरित भेला ॥ ४ ॥ भनइविद्यापति शुन धनि राई । कानु समझाइते हम चलि जाइ ॥ ६ ॥ राधा । कि पुछसि मोहे निदान । कहइते दहइ परान ॥ २ ॥ तेजलु गुरुकुल सङ्क। पूरल दुकुल कलङ्क ॥ ४ ॥ विहि मोरे दारुण भेल । कानु निठुर भइ गेल ॥ ६ ॥ हम , अवला मतिवामा । न गणले इह परिणामी ॥ ८ ॥ कि करव इह अनुयोग । आपन करमक दोख ॥ २० ॥ कवि विद्यापति भान । तुरिते मिलायव कान ॥ २२ ॥ राधा । हिम हिमकर तापे तपायल भै मेल काल वसन्त । कान्त काक मुखे नहि सम्वादई किये करु मदन दुरन्त ॥ २ ॥ जानलु ऐ सखि किये मोर कुदिवस भेल । 12