पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३५६

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विद्यापति । कि क्षने विहि मोहे विमुख भैलरे पलट दिठि नहि देल ॥ ४ ॥ एत दिन तनु मोर साधे साधाओल वुझल अवहु निदान । अवधिक शि भेल सब कहिनी कत सह पाप पराण ॥ ६ ॥ विद्यापति भन माधव निकरुण काहे समुझायव खेद ।। इह वड़वानल ताप अधिक भेल दारुण पियाक विच्छेद ॥ ८ ॥ राधा । ६ ६२ सुरतरुतल जव छाया छोड़ल हिमकर वरिखय आगि । दिनकर दिन फले शीत न वारल हम जीयब कथि लागि ॥ ३ ॥ सजनि अव नहि बुझिये विचार ।। धनका आरति धनपति न पूरल रहल जनम दुख भार ॥ ४ ॥ जनमे जनमे हरगौरि अराधलों शिव भेल शकति विभोर । काम धेनु कत कौतुके पूजल न पूरल मनोरथ मोर ॥ ६ ॥ अमिया सरोवरे साधे सिनाय संशय पड़ल पराण । विहि विपरीत किये भेल ऐसन विद्यापति परमाण ॥ ८ ॥