पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३८०

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विद्यापति । भनइ सरस कवि रस सुजान । त्रिपुरासहसत अरजुन नाम ॥ ६ ॥ राधा । ७२३ | सिसिर समय वह बहल वसन्त । गरजेहु घर नहि आयल कन्त ॥ २ ॥ ओ परदेसिया धन वनिजार । मोरा हृदये भार भेल हार ॥ ४ ॥ गुनिजन भए पहु भेला भोर । आकुल हृदय तेज नहि मोर ।। ६ ॥ ए सखि ए सखि कि कहवि तोहि । भलि कई नाथे विसरल मोहि ॥ ८॥ निज तन भमय कुसुम मकरन्दु । गगन अनल भए उगल चन्द ।। १० । भइन विद्यापति पनु पहु आस । जावत रहत देह तिल सास ॥ १२ ॥ राधा । ७२४ कानने कानने कुन्द फूल । पलटि पलटि ताहि भमर भूल ।। २ ।।। पुनमति तरुनि पिया सँग पाव । वरिसे वरिसे ऋतुराज आव ॥ ४ ॥ रनि छोटि हो दिवस बाढ़ । जनि कामदेव करवाल कॉढ ॥ ६ ॥ मलयानिल पिव जुवति मान । विरहिनि वेदन के न जान ॥ ८ ॥ भने विद्यापति रितु वसन्त । कुमर अमर ज्ञनो देइ कन्त ॥ १० ॥