पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३८२

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३६८ विद्यापति । हम छल न टुटव नेहा । सुपुरुख वचन पषाणक रेहा ॥ ६ ॥ भनइ विद्यापति साइ । न कर विषाद मने मिलव मधाइ ॥ ८॥ । राधा । ७३३ कत दिन रहवं कपल कर लाय । रविक अछइत कमलिनि कुम्भिलाय ॥ २ ॥ कब निअ उगुति जुगुति परचर। आव नई जिउति धनि तेहरि पियारि ॥ ४ ॥ अभरण भूखन हलु छिड़िआय । कमक लता सन फुल झड़ि जाय ॥ ६ ॥ वसन उघारि हेरल भरि दीठि । गारि नडाओल कुसुमक सीठि ॥८॥ भनइ विद्यापति सुन ब्रजनतिर । धैरज धय रह मिलत मुरारि ॥१०॥ राधा। ७३४ सजनि के कह आओव मधाइ । विरह पयोधि पार किये पाओव भकु मने नहि पतियाइ ॥२॥ एखन तखन करि दिवस गमाओल दिवस दिवस करि मासा । मास मास करि बरस गमाओल छोडलु जीवनक आशा ॥४॥ बरस बरस कीर समय गमाओल खोयतुं तनुक से । हिमकर किरण नलिनि यदि जारव कि करव माधवी मासे ॥६॥