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पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३८६

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विद्यापति । राधा । आज मोझे जानल हरि बड़ मन्द । बोल वदन तोर पुनिमक चन्द ॥ २ ॥ एके दिने पुरित दिनहु दिने खीन । ती सजे तुलना हरि हमे दीन । ४ ।। वइसाल अधोमुखि चिते गुन दन्द । एके विरहिनि हे दोसरे दह चन्द ।। ६ ।। नयन नीर ढर पानि कपोल । खने खने मुरुछि भरम कत बोल ॥ ८ ॥ साख चेताउलि अवधिक आस । रिपु ऋतुराज तेज घन सॉस ॥१०॥ राधा । “७३७ जखने आव हरि रहव चरण धरि चान्दे पुजव अरविन्दा | कुसुम सेज भलि करव सुरत केलि दुहु मन होएत सानन्दा ॥२॥ साए साए हमर पराननाय कने विरमाओल कृत जिव देव विसवासे ॥३॥ दिवस रहओं हर रअनि वइरिनि भेलि विसम कुसुम सर भावे ।। नयन नीर गल मुरछि धरनि पल निरदए कन्त नहि आवे ॥५॥ समय माधव मास पिआ परदेश वस ताहि देस वसन्त न भेला । फुलल कदव गछि हाट वाट सेहो अछ मोरे पिआ, सेओ न देखला ॥७॥ भनइ विद्यापति सुन वर जउवति अछ तोकें जीवन अधारे ।, राजा सिवसिंह रूप नरायन एकादस अवतारे ॥६॥