पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३९

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विद्यापति । राधा । साख आज मधुरिपु भेटल मो हटि। लोचन जुगल जुड़ाएल बटिऑ ॥ २ ॥ दरसन लोभे पसार देल हमे सखि मुखे सुनि वड़रसी। तरवने उपजु रस भैलिहु मोजे परबस विसराल दुधहु कलसी ॥ ४ ॥ मधुरिपुसम नहिं देखिये सोहोन जेदिअ तन्हिक उपाम रे । सरद सुधानिधि जसु मुख नेग्रोछन पङ्कज की लेब नाम रे ॥ ६ ॥ अधराने लोचने जखने निहारलन्हि वाङ्क कइए भेउह भङ्गारे । तरवनुक अवसर जागल पचस थाने थाने गेल अङ्गारे ॥ ८॥ दान कलपतरु मेदिनि अत्रतरु नृपति हिन्दु सुरतान रे।। मेधा देविपति रूपनराशन सुकवि भनाथ कण्ठहार रे ॥ १० ॥ (३) घडरसी=कथोपकथन । राधा । हमें हास हेरला थोरा रें। सफल भेल सखि कौतुक मौरा ॥ २ ॥ हरितहि हरि भेल ने रे । जनि मनमथे मन वेधल वाने रे ॥ ४ ॥ लखल ललित तसु गाते रे | मन भेल परसिय सरसिज पाते रे ॥ ६ ॥ तनु पसरल विन्दुर रे । नेउछिनेडाओल सनखतइन्दु रे ॥८॥ कॉपल परम रसाले रे । जनि मनसिजगरइजपेलु तमाले॥१०॥ विद्यापति कवि भाने रे । करत कमलमुखि हरि सावधाने रे ॥१२॥ (८) नडाओल=फेंक दिया। (१०) जैसा तमाल वृक्ष गल कर कामदेव का नाम जपने लगा। (१३) सावधाने =भाव उद्दीपन, कन्दर्प जागरण ।