पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४०८

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३८८ विद्यापति । दूती । "७७० माधव जानल न जिउति राही । । । । । । जतवा जकर लेले छाल सुन्दर से सवे, सोपलक ताही ॥३॥ सरदक ससधर मुखरुचि सोपलक हरिनके लोचन लीली ।।।। केसपास लए चमरिके सोपल पाए. मनोभव पीला ।।४।। ।। दसन दसा दालिवके सोपलक वन्धु अधर रुचि, दली,। - । । देहदसा सउदामिनि सोपलक काजर सनि साख भेली ॥६॥ । भनुहरि भङ्ग अनङ्ग चाप दिहु कोकिलके दिहु। वाणी । । केवल देह नेह अछलओले एतवा अएलाहु जानी ॥८॥ . ? भनइ विद्यापति सुन वर जउवति चिते जनु झॉवह आने । राजा सिवसिंह रुपनराअन लखिमा देबि रमाने ॥२०॥ दूती । । । " { { }}} ७७१।। ।। - - 'छलिहु पुरुव भोरे ' ' ' न जाएब पि मारे ' • 'पानिक 'सुताधनि 'कलंहइ ।" ।। 1 ।' क्षने एके जागलि। 'शेअए लागलि'६" {} पिआ गेल निज कर मुदरी दइ ॥ २॥