पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४०९

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विद्यापति ।। । दिने दिने तनु सेख दिवस वरिस लेख । । । सुन कन्हु तोह विनु जैसनि रमनी ॥३॥ परक वेदन दुखः न बुझए मुरुख पुरुप निरापन चपल मती । रभस पडलि बोल सत कए तन्हि लेल | कि करति अनाइति पडलि जुवति ॥५॥ दूती । ७७२ कत 'कतं भमि पुरुस देखल कत कलावति नरि ।। जिव सञो पेम पलक उपजइ सवे से बुझ विचार ॥२॥ तकीरासी देखि देखि तवे मोहि न रह गैन । जाहि वधतव से जेहेन कर तह'चाहि नहि अनि ॥४॥ माधर्व' कहो तोहि बुझाइ । से आवे मरन सरन जानलि तोहर विरह पाई ॥६॥ धरनि सयन मुदल नयन नलिन मलिनं समे ।। कते जतने वोलिकहु धनि तेरि वइसाउलि हमे ॥८॥ तैअग्रो'जदि पुछले 'न वाजलि वचन ना सुन आधे ।',' । । सुमर से साख तोह मोह गोलि विधि वसे भैलि वाधे ॥१०॥ । ।