पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४१५

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विद्यापति।
दूती।
७८३


विधि वसे तुअ सङ्गम तेजल दरसन भेल साध।
समय वसे मधु न मिलए सौरभ के कर वाध॥२॥
माधव कठिन तोहर नेह।
तुअ विरह वेआधि मुरछति जीवन तासु सन्देह॥४॥
जगत नागरि कत न आगरि तथुहु गुपुत पैम।
से रस रभस पुनु पाविअ देलहु सहस हेम॥६॥

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दूती।
७८४


औजे अभागलि देहरि लागलि पथ निहारए तोर।
निचल लोचन सुन न वचन ढरि ढरि खस नौर॥२॥
माधव काञि विसरालि वाला।
ओ नवि नागरि गुनक आगरि भैलि निमालक माला॥४॥
रुखाल भुखलि दुखलि देखाले देखालि साखि समेतें।
फूजलि कावरि न वाध सामरि सुन्दरि अवय एते॥६॥
तीहे विसरालि अदिग पड़लि दुवर झामर देह।
जनि सोनारें कसि कसउटा तेजल कनक रेह॥८॥