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पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४२८

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विद्यापति । आङ्गन चइस सगुन कह काक । विरह । विभञ्जन दिनपरिपाक ॥ ६ ॥ आज देखव पिय अलखक चान । विद्यापति कविवर एह। भान ॥ ६ ॥ राधा । ८०२ मोराहि रे अँगना चॉदन केरि गछि ताहि चढि कुरुरए काक रे । सोने चञ्चु बंधए देव मौए वाअस जो पिआ आओत आज रे ॥२॥ गावह सहिलोरि झूमरि मअन अराधने जानु ॥३॥ चउदिस चम्पा मउलि फुलाल चान्द उजोरिए राति ।। कइसे कए मअन अराधवा रे हेइति बडि रति साति ॥५॥ विद्यापति कवि गाविआ रे तोके अछ गुनक निधान । राउ भोगिसर गुन नागरा रे पदमा देवि रमान ।।७।। राधा । ८०३ सुरभि समय भल चल मलनिल साहर सउरभ सार लो। काहुक वीपद काहुक सम्पद नाना गति संसार लो ॥२॥ कोइली पञ्चम रागे रमन गुन सुमराञो कुसल आओत मोर नाह लो । धरिए हमे असाह अछलिहु सुमरि न छड़ल ठाम लो ॥४॥