पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४४५

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विद्यापति, ४२१ जो श्रीखण्ड सौरभ अति दुर्लभ त पुन काठ कठोर । । जौं जगदीश निशाकर त पुन एकहि पक्ष इजोर ॥४॥ मनि समान अशोरो नहि दोसर तनिकें पायर नामे । कनक कदलि छोट लज्जित भै रहु की कहु ठामह ठामे ॥६॥ तोहर सरिस एक तोह माधव मन होइछ अनुमाने । सज्जन जन सौं नेह कठिन यिक कवि विद्यापति भाने ॥८॥ --०- , राधा । । । । ८३ ३ । | खिति रैण गन जदि गगनक तारा । दुइ कर सिचि जदि सिन्धुक धारा ॥ २ ॥ प्रुव भानु जदि पछिम उदीत । तइअो विपरित नह सुजन पिरीत ॥ २ ॥ माधव कि कहब आन । ककर उपमा दिय, पिरिति समास अचल चलय जदि चित्त कह बात । कमल फुटय जदि गिरिवर माण। दावानल शितल हिमगिरि ताप । चान्द जद विष धर सुधा धर साप ।।१,, भनइ विद्यापति शिवसिंह राय । अनुगत जन छाडि नहि उजियराय ॥१३॥ राधा । ८३४ हातक दरपन भार्थक फुल । नयनक अञ्जन मुखक त. हृदयक मृगमद गीमक हार ।, देहक । सरवस गेहक ।