पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

१२२ विद्यापति । पाखिक पाख मीनकै पानि। जीवक जीवन हम तुहु जानि ॥ ६ ॥ जुहु कइसे माधव कह तुहु मोय । विद्यापति कह दुहु दोहा होय ।। ८॥ • । ।

| राधा । । । राधा । साख कि पुछसि अनुभव मोय । सेहो पिरित अनुराग बखानइत तिले तिले नृतुन होय ॥२॥ जनम अवधि हम रुप निहारत नयने न तिरपित भेल । , - सेहो मधुर बोल श्रवणहि सुनल श्रुतिपये परश न गेल ।।४।। ' कत मधु जामिनिय रभसे गमाओल न बुझल कैसन केल । । || लाख लाख जुग हिय हिय राखत तइओ हिया जुड़न न गेल ॥ ६ ॥ कत विदगध जन रस अनुमगन अनुभव काहु न पख । विद्यापति कह प्राण जुड़ाइत लाखवे न मिलल एक ॥८॥ राधा। || ६३६ सुनु रसिया । ।। नई वजाउ विपिन वसिया ॥३॥ -