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पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४५१

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विद्यापति । ४२७ घन घन घनय घुघुर कत बाजय हन हन कर तैय काता । विद्यापति कवि तुअ पद सेवक पुत्र विसरु जनु माता ॥८॥ जय जय भगवति जय महामाया । त्रिपुर सुन्दर देवि करु दाया। ग्राहे माता ॥२॥ दालिम कुसुम सम तुअ तनु छवी । तखने उदित भैल जनि रवी ॥ ४ ॥ धनु सरे पास अड्कुस हाथ । तेतिस कोटि देव नाव माथ ॥ ६ ॥ चन्दुिम उपम न पावे । काम रमनि दासि पर्दै दाव ॥ ६ ॥ जय जय भगवति भीमा भवानी । चारि वेदे अवतरु ब्रह्मवादिनी ॥ २ ॥ हरि हर ब्रह्मा पुछइत भमे । एकओ न जान तुय आदि मरमे ॥ ४ ॥ भनइ विद्यापति राय मुकुटमणि । जिवो रुपनरायन नृपति धराण ॥ ६ ॥


कनक भूधर शिखरवासिनि चन्द्रिकाचय चारु हासिनि दर्शन कोटि विकाश वङ्किम तुलित चन्द्र क्ले । कुद्ध सुररिपुबलनिपातिनि महिप शुम्भनिशुम्भघातिनि । भीतभक्त भयापनोदन पाटल प्रवने ॥२॥